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(Dr Bhimrao Ambedkar Biography )डॉ भीमराव अंबेडकर का फुल जीवन परिचय

(Dr Bhimrao Ambedkar Biography )डॉ भीमराव अंबेडकर का फुल जीवन परिचय

डॉ भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महारास्ट के मऊ में हुआ था । वे दलित समाज से थे । उनके बहुत से अत्याचार और भेदभाव का सामना करना पड़ा था । उचच शिझा प्राप्त करने का सपना लेकर उन्होंने कोलंबिया विश्विधायल से पढाई की , जो लन्दन में इस्थित है । वही से डॉ भीमराव आंबेडकर पीएचडी की उपाधि हाशिल की । डॉ अम्बेडकर साहब ने भारतीय समाज में व्यवप्त जातिवाद और असमानता के खिलाफ बहुत ही आवाज उठाई थी , साहब ने दलित समुदाय के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और दलित को सामान अधिकार दिलाने के लिए कई आंदोलन किये ।

डॉ भीमराव आंबेडकर भारत के सविधान निर्माण के मुख्य शिल्पकार मने जाते है । 1947 में उन्हें सवस्त्रं भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया था । उनोहने सविधान सभा में अहम् भूमिका निभाई । अम्बेडकर साहब ने बौध्द धर्म अपनाया और दलितों को भी इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया । डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन समाज में सुधार , समनता और अधिकारों की लड़ाई के लिए समापित था । उनका विचार धारा आज भी लोगो को प्रेरणा देती है ।

विवरण जानकारी
पूरा नाम भीमराव राम जी आंबेडकर
जन्म तिथि 14 अप्रेल 1891
जन्म स्थान महू मध्यपरदेश भारत
मृत्यु तिथि 6 दिसम्बर 1956
मृत्यु स्थान दिली भारत
पिता का नामराम जी मालोजी सकपाल
माता का नामभीमाबाई मुरबाडकर
पहली (wife ) का नामरमाबाई आंबेडकर ( विवाह 1906 मृत्यु 1935)
दूसरी (wife )का नामसबिता आंबेडकर ( विवाह 1948 )
बच्चे यशवंत आंबेडकर
भाई – बहन का नामआनंदराव ,बालाराम ,मंगला ,मंजुला और तुलसा

Table of Contents

डॉ भीमराव अंबेडकर का प्रांरभिक जीवन

डॉ भीमराव अंबेडकर का प्रांरभिक जीवन बहुत ही संघर्ष और चुनोतियो से भरा था । वे महार जति से थे , जिसे उस समय अछूत माना जाता था । समाज में व्यप्त जतिगत भेदभाव और भयानक असमानता का समाना करना पड़ा था । ये सभी चीज़े उन्हें बचपन में है झेलना पड़ा था । डॉ भीमरॉव के पिता जी ( रामजी मालोजी सकपाल ) ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे , उनका परिवार शिछित था , और उनके पिता भीमरॉव को शिझा का महत्व समझाया , जो आगे चलकर उनके जीवन में बहुत की कार्तिकारी बदलाव लाया ।

डॉ आंबेडकर को प्रारभिंक जीवनं से ही समाज में व्याप्त बुराइयों और असमानता के खिलाफ लड़ने और खड़े होने की प्रेरण मिल गई थी । उनोहने सिझा को अपना हथिया बनाकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाया । उनके प्रारभिंक जीवन की ये घटनाएं उन्हें समाज में सुधार और दलितों के अधिकारों की लड़ाई में अडिग रहने के लिए प्रेरित करती रही । आंबेडकर साहब ने अपनी प्रारभिक शिझा सातारा मुंबई से पूरी की । वे हमेशा पढाई में सबसे पहले नंबर पर आते थे , और उनके इस लगन को देखते हुए बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उन्हें छात्रवर्ती दी , जिससे वे आगे की पढाई के लिए अमेरिका चलेंगे गए ।

वे अमिरेका के कोलंबिया विश्विधालय से स्नातकोत्तर और पीएचडी की उपादि प्राप्त करने के बाद , डॉ भीमराव आंबेडकर लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी उचच शिझा हाशिल की । उनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों से भरा था । स्कूल में उन्हें अन्य बच्चो से अलग बिठाया जाता था कई बार तो उनको पानी पिने के लिए भी कई बार दूसरे लोगो पर निर्भर रहना पड़ता था । जहा परअंबेडकर साहब रहते थे वह के लोगो दलितों को बहुत ही यातना और आपस में बहुत भेद भाव करते थे , ये सभी देख कर उनके मन बिचार आया और उन्होंने खुद से संकल्प किया की वे समज में इस भेदभाव को ख़त्म कर देंगे और इसे जायदा नहीं बढ़ने देंगे ।

डॉ भीमराव अंबेडकर की शिझा

डॉ भीमराव अंबेडकर का मानना था , की शिझा समाज में परिवर्तन लंङे का सबसे सशक्त माधयम है । वे कहते थे , शिझित बनो , संगठित रहो , और संघर्ष करो । आंबेडकर साहब ने शिझा को केवल व्यकितगत उन्नति का साधन नहीं माना है , शिझा से समज का भी बहुत भला होता है , डॉ भीमराव आंबेडकर साहेब ने कहा है । उनोहने दलितों और वंचित को शिझित करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और समझ को बड़ा सके और समझ में सम्मन से जी सके । डॉ भीमराव आंबेडकर ने शिझा के माधयम से दलितों के आत्म – सामान और स्वाभिमान को बढ़ाने का कार्य किया , जो उनके जीवन के सबसे बड़े उदेश्यो में से एक था ।

डॉ भीमराव का लन्दन में अध्ययन

डॉ भीमराव अंबेडकर साहेब शिझा का महत्व बतात्ते है , जब वे अमेरिका से अपनी पढाई पूरी करने के बाद तब वे इंग्लैंड चले गए । वह उन्होंने लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कानून और अर्थश्स्त का अध्ययन किया । वही से डॉ भीमराव आंबेडकर ने डीएससी और बैरिस्टर की उपाधिया प्राप्त की । उसी समय से उन्होनें भारतीय समज की समस्याओ और दलितों के अधिकार पर विचार करना सुरु किया । जिससे वे धीरे धीरे लन्दन से ही भारतीय समाज में व्याप्त असम्मानता और जातिगत भेदभाव को सम्पत करने का संकल्प लिया था । बल्कि भारत में समाज सुधार की दिशा में उनके प्रभावशली कार्यो की नीव राखी । उन्होंने लन्दन सिर्फ क़ानूनी और आर्थिक समझ की पूरी शिझा ली और उसी सिझा में बुल्कुल निपुड़ हो गए थे ।

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कोलंबिया विश्विधलय में शिझा

1913 में डॉ भीमराव अंबेडकर अमेरिका के कोलंबिया विश्विधायलय में अध्ययन के लिए पहुंचे थे । यहाँ उनोहने राजनैतिक विज्ञानं , अर्थशस्त्र और समाजशास्त्र में पढाई की और 1915 में एमए की डिग्री प्राप्त की । इसके बाद उन्होंने पीएचडी की , जिसमे उनका शोध विषय , ब्रिटिश भारत में पतिय वित् का विकास किया । कोलंबिया विश्विधायल में अध्ययन के दौरान उन्हें सामाजिक सामंता , सवतत्रता और न्याय के गहन सिधान्तो को समझने का अवसर मिला । यह शिझा उनके विचारो में सतयित्व और समाज के प्रति जिम्मेदारी का भाव विकसित करने में सहायक सिध्द हुई । उनकी यह शिझा भारत में सामाजिक सुधर के उनके मिशन की नीव बानी ।

डॉ अंबेडकर को छात्रवृत्ति प्राप्ति

डॉ भीमराव अंबेडकर साहेब बचपन से ही पढाई में बहुत अच्छे थे , उनकी इस म्हणत और लगन को देखकर बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उन्हें उच्च शिझा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की । इस छात्रवृत्ति ने उनके जीवन की दिशा बदहाल दी और उन्हें विदेश में उच्च शिझा प्राप्त करने का अवसर मिला । विदेश में जाकर पढाई करने का सपना , डॉ भीमराव अंबेडकर के लिए संभव नहीं था , लेकिन इस आर्थिक सहायता ने उनके लिए शिझा के दरवाजे खोल दिए । इस अवसर ने न केवल उनके व्यकितगत विकाश में योगदान दिया , बल्कि भविष्य में सामजिक न्याय की दिशा में उनके कार्यो का आधार भी बनाया । इस छात्रवृत्ति के बिना डॉ अंबेडकर का जीवन इतना आगे नहीं जा पता , और वे कभी भारत के सविधान की संरचन नहीं कर पाते ।

शिझा का महत्व

डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म महारास्ट के एक गरीब महार परिवार में हुआ था , जिन्हे समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था ( अस्पृश्य ) ये माना जाता था । स्कूल में उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा , उन्हें अन्य बच्चो से अलग बिठया जाता और अपनी के लिए भी दुसरो पर निर्भय रहना पड़ता था । इस कठिनाइयों के बावजूद , उन्होंने अपने अधययन में बहुत अच्छे ( नंबर ) प्र्दशन किया । उनके पिता रामजी ने उन्हें शिझा की प्रति जागरूक किया और उन्हें पढाई के लिए प्रोत्शाहित किया । प्रारंभिक शिझा के डोवरां की गई मेहनत और संघर्ष ने डॉ भीमराव अंबेडकर की सोच को गहराई से प्रभावित किया , जिससे आगे चलकर वे समाज सुधारक के लिए प्रेरित हुए। डॉ आंबेडकर का कहना है की , अपनी जिंदगी में सिझा का बहुत ही महत्व होता है , कियोकि आप बिना शिझा के समाज में कोई भी बदलाव नहीं ला सकते है ।

छुवाछुत के विरोद संघर्ष

डॉ भीमराव अंबेडकर ने समाज में व्याप्त छुआछूत और जातिगत भेदभाव के खिलाफ बहुत संघर्ष किया । डॉ आंबेडकर ने आने जीवनं में कई सामाजिक आंदोलनों का नेतृव किया , जिनमे महाद्द सत्याग्रह शामिल था , जो दलितों को सावर्जनिक जल स्रोतों तक पहुंच दिलाने के लिए था । आंबेडकर का मनाना था , की सामाजिक समानता के बिना सच्ची सवतंत्रता संभव नहीं है । उनके संघर्ष ने दलित समुदाय को आत्मसम्मान और अधिकारों के प्रति जागरूक किया ।

दलित अधिकारों की वकालत

डॉ भीमराव अंबेडकर ने दलितों के अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया । उन्होंने समाज में दलित समुदाय को समान , अधिकार दिलाने के लिए बहुत से कदम उठाये थे । अंबेडकर ने दलितों के सशकितकरण के लिए शिझा , रोजगार और सामजिक सुरझा जैसे बहुत मुद्दों पर जोर दिया । उनका मनाना था ,की दलितों को भी समाज में वही सम्मान और अवसर मिलाना चाहिए , जो अन्य लोगो को मिल रहा है । दलित अधिकारों के लिए उनका योगदान उन्हें महान नेता के रूप में भारत में दिखाया गया ।

डॉ आंबेडकर का राजनैतिक जीवन

डॉ भीमराव अंबेडकर का राजनैतिक जीवन में प्रवेश करने के बाद आंबेडकर ने दलितों और वंचित वर्गो के अधिकारों के लिए बहुत काम किया । डॉ आंबेडकर साहेब भारत के पहले कानून मंत्री बने और उन्होंने सविधान निर्माण में अहम भमिका निभाई । आंबेडकर का राजनैतिक जीवन उनके संघर्ष , कर्त्वनिष्ठा और समाज सुघर के प्रति समपर्ण का प्रतीक था । वे एक सशक्त नेता थे , जिन्होंने भारतीय समज में दलितों के सम्मान और समानता के लिए अटूट संघर्ष किया ।

संविधान नर्माण में योगदान

डॉ भीमराव अंबेडकर को भारतीय सविधान के निर्माता के रूप में जाना जाता है । उन्होंने सविधान का ऐसा प्लान तैयार किया , जिसमे सभी नागरिक के लिए सामान अधिकार , न्याय और स्वस्तंत्र की गारंटी थी । उन्होंने सविधान के माधयम से सामजिक असमानता को समाप्त करने के लिए कई अनुच्छेद को शामिल किया , जो आज भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद है । आंबेडकर का यह योगदान उनकी विध्दता और दृस्टिकोण का परिचायक है ।

पुरस्कार और सम्मान

डॉ भीमराव अंबेडकर के योगदान को भारत सर्कार ने 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मनित किया गया । यह देश का सवोर्च्च नागरिक सम्मान है , जो उनके संघर्ष और योगदान को स्वीकारता है । इसके अलावा उन्हें कई अन्य राष्टीय और अंतर्रस्तीय सम्मनों से भी नवाजा गया , जो उनकी अद्वितीय विध्दता , नेतृत्व और समाज सुधार के प्रति समपर्ण को दर्शाता है

  • भारत रत्न ( 1990 में ) -भारत का सवोर्च्च नागरिक सम्मान , सविधान निर्माण और दलित उत्थानमे योगदान के लिए ।
  • बाबा साहेब का ख़िताब – उनके अनुयायियों द्वारा दिया गया सम्मानजनक नाम
  • सविधान निर्माता का सम्मान – भारतीय सविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में विशेष मान्यता ।
  • सामजिक न्याय का प्रतीक – समानता और न्याय के लिए संघर्ष , जिससे वे न्याय का प्रतीक बने ।
  • अंतरास्ट्रीय मान्यता – समाज सुधर प्रयासों के लिए वैश्विक स्टार पर सम्मनित किया
  • डाक टिकट – भारत सरकार द्वारा 1956 और 1991 में उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया
  • शिझा संस्थनो का नामकरण – भारत में कई विश्विधालय और कॉलेज उनके नाम पर ।
  • स्मारक और संग्रालय – महाराष्ट्र में “दीक्षाभूमि” जैसे कई स्मारक उनके सम्मान में स्थापित किया गया ।

बाबा साहेब के पास कितनी डिग्री

डॉ भीमराव अंबेडकर के पास विभिन विषयो में कई उच्च डिग्रियाँ है , जिसमे एमए , पीएचडी और ड्डी लिट् शामिल है । उनोहने अमेरिका और इंग्लैंड की महान विश्विधलयो से शिझा प्राप्त की , जो उन्हें भारतीय समाज के सबसे शिझित और विद्वान नेताओ में से एक बनता है

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धर्म परिवर्तन की घोषणा

वो दिन 14 अक्टूबर 1956 को डॉ आंबेडकर ने लाखो अनुयायियों के साथ बौध्द धर्म अपनाने की घोषणा की । उन्होंने कहा की जातिगत भेदभाव से मुक्ति का यह एक मात्र उपाय है । उनका धर्म परिवर्तन भारत में सामजिक सुधर की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था , जिसमे लाखो दलितों को नया जीवन दिया ।

डॉ भीमराव द्वारा लिखित पुस्तके

डॉ भीमराव आंबेडकर ने अपने विचारो और अनुभवों को कई पुस्तकों में लिखा ।

पुस्तक ( Book )विषय ( Topik )
एनीहिलेशन ऑफ कास्टजाती छुवाछुत के खिलाफ , जिसमे जाती प्रथा को समाप्त करने की बात की है ।
द बुध्दा एंड हिज़ धम्मा बौध्द धर्म और भगवान बौध्द धर्म के सिधान्तो पर आधारित , यह उनकी मृत्यु के बाद प्रकसित हुए
थॉट्स आन लिंग्विस्टिक स्टेटस भारत में भाषा के आधार पर , भारत के राज्यों का निरमंड
द प्रॉब्लम ऑफ थे रूपी इट्स ओरिजिन एन्ड इट्स सोलुशन भारत की मोदीक निति और रुपये की समस्या पर विचार
हू वेयर द शूद्राजशूद्रों की उत्पत्ति और उनकी स्थिति पर, जिसमें उन्होंने जाति व्यवस्था के ऐतिहासिक पहलुओं को समझाया।
द अनटचेबल्स: हू वर देयर एंड व्हाई दे बिकेम अनटचेबल्सअछूतो की उत्पति और उनके साथ हुए अन्याय की चार्चा
स्टेट्स एंड माइनॉरिटीजभारतीय सविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और संरझण पर विचार
थॉट्स ऑन कांग्रेस एंड गांधीमहात्मा गांधी और कांग्रेस के नीतियों के आलोचनात्मक विश्लेषण पर आधारित
रिडल्स इन हिंदुइज्महिन्दू धर्म के विभिन्य पालुओं और परम्परा की आलोचना
अधिकार और संसाधनों पर विचार समाज में सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक संसाधनों की सामंता पर विचार

बौध्द धर्म को अपनाना और उसके बाद के वर्ष

डॉ भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौध्द धर्म को अपना लिया था , और इसे दलितों के लिए जातिगत उत्पीड़न से मुक्ति का मार्ग बताया । उनोहने लाखो अनुयायियों के साथ बौध्द धर्म की डिझा ली , जिससे भारत में बौध्द धर्म का पुनरुत्थान हुआ । धर्म परिवर्तन के बाद के कुछ वर्षो में उन्होंने समाज के बौध्द धर्म के सिधान्तो का प्रचार किया और लोगो को शिजा और समानता का सन्देश दिया । यह उनके जीवन का एक अच्छा निर्णायक मोड़ था , जिसने समज में उनके योगदान को और भी मजभूत किया ।

डॉ भीमराव आंबेडकर का महत्वपूण्र योगदान

डॉ भीमराव अंबेडकर का योगदान सिर्फ सविधान निर्माण तक सिमित नहीं थी , डॉ अंबेडकर साहेब सशक्त समाज सुधारक भी थे । उन्होंने जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई और दलितों सुमदाय के सशकितकरण के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया । अंबेडकर का मानना था की सिझा , समानता और सामजिक न्याय ही सच्चे लोकतंत्र की पहचान है । उनके योगदान ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी और उन्हें सदैव प्रेरणा का स्त्रोत बने रखा ।

अंबेडकर साहेब की विरासत

डॉ भीमराव अंबेडकर की विरासत उनके विचारो , कार्यो और सविधान में उनके योगदान के रूप में आज भी भारत में जीवित है । उनके दवारा सुरु किये गए आंदोलन , विचारधारा और समाज सुधर आज भी लोगो को प्रेरित करते है । के द्वारा स्थापित संस्थये और संगठनों ने दलितों और पिछड़े वर्गो के अधिकारों के लिए हमेशा संधर्ष किया है । अंबेडकर की विरासत समाज में समता और न्याय की स्थापना के लिए एक मह्त्वपूण स्रोत बानी हुए है ।

डॉ भीमराव अंबेडकर बनाम गांधी जी

डॉ भीमराव अंबेडकरऔर महात्मा गाँधी के बिच कई विचारो में मतभेद थे , विशेषकर जाती व्यवस्था और दलितों अधिकारों के मुद्दे पर । गाँधी जी चाहते थे की दलित समज में ही सुधार लाये , जबकि अंबेडकर साहेब का मानना था की सामजिक समानता के लिए संपूण्र जाती व्यवस्था को समाप्त करना चाहिए । लेकिन दोने नेताओ का उद्देश्य समान था । भारतीय समाज में समानता और न्याय की स्थापना । इन मतभेदो के बावजूद डोमो नेताओ ने एक – दूसरे के विचारो का सम्मान किया ।

डॉ साहेब के ऊपर फिल्मे और धारावाहिक

डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन पर के फिल्मे और धारावाहिक बने है , जैसे “डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ” और ” एक महानायक डॉ बी आर अंबेडकर ” ये फिल्मे उनके जीवन , संघर्ष और समज सुघर के प्रति समपर्ण को दिखती है । ये नाटक उनके विचारो और कार्यो को जन – जन तक पहुंचने में महत्वपूण्र भूमिका निभा रही है , जिससे युवा पीढ़ी को उनके संघर्षो और योगदान के बारे में जानने को बहुत ही प्रेरित करता है ।

लोकप्रिय संस्कति में अंबेडकर साहेब

डॉ अंबेडकर का नाम भारतीय समाज में एक प्रेरणा के रूप में लिया जाता है । वे दलितों के अधिकारों और समानता के प्रतीक माने जाते है । उनकी जयंती को पुरे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है और उन्हें आर्दश के रूप में देखा जाता है । अंबेडकर भारतीय जनमानस में एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित हो गए है , जिन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में बदलाव लेन का कार्य किया ।

समप्रित स्मारक और संग्रहालय

भारत में डॉ भीमराव अंबेडकर साहेब का समप्रित कई स्मारक और संगहालय है । जैसे मुंबई में डॉ अंबेडकर संग्रहालय और दिल्ली में अंबेडकर स्मारक है । इन संग्रहालयों में उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज और तस्वीरें और वस्त्र अभी भी रखे गए है , जो उनके जीवन और कार्यो को समझने में मदद करते है । ये स्मारक उनकी विरासत और योगदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचने का एक माधयम है ।

डॉ साहेब का घोषणाए और विचार

डॉ भीमराव अंबेडकर के विचार और घोषणाएं आज भी समज के लिए प्रेणादायक है । उन्होंने कहा की शिझा , समानता और स्वतन्त्रता समाज को प्रगति की और ले जाने के मुख्य स्तंभ है । अंबेडकर का मानना था , की समाज में बदलाव लेन के लिए लोगो को शिझित होना बहुत ही जरुरी है । उनके ये विचार आज भी समाज सुधर और सामजिक न्याय की दिशा में मार्गदर्शक बने हुए है ।

अंबेडकर यूनिवसिर्टी

डॉ भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली और महाराष्ट में स्थापित की गई है , जिनका उदेश्य दलितों और वंचित वर्गो को उच्च शिझा प्रधान करना है । ये विश्विधलय डॉ अंबेडकर के शिझा , समाजिक न्याय और समानता के विचारो को आगे बढ़ने में मह्त्वपूण भूमिका निभाते है । यहाँ पर उनके विचरो और शिझा पर विशेष जोर दिया जाता है , ताकि ईवा पीढ़ी उनके आर्दशो से प्रेणना ले सके ।

अंबेडकर नगर कहा है

में आप को बता दू , की अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश का एक जिला है , जो डॉ भीमराव अंबेडकर साहेब के नाम पर स्थापित किया गया है । इसे उनके सम्मान में बनाया गया है , और यहाँ उनके नाम से जुड़े कई स्थापना और स्मारक भी है । अंबेडकर नगर डॉ आंबेडकर की स्मृति को संजोए रखने और उनके विचारो को प्रसारित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है ।

आंबेडकर साहेब का निधन कब हुआ

डॉ भीमराव आंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था । उनका सव्स्थ्य कई वर्ष से खराब चल रहा था , लेकिन अपने अंतिम दिनों तक वे समाज सुधर के कार्यो में स्किरय रहे । उनके निधन के बाद , उन्हें भारत के सविधान निर्माता और दलितों के मशीहा के रूप में याद किया जाता है । अंबेडकर के योगदान की स्मरण करते हुए उन्हें आज भी भारत रत्न और समज सुधारक के रूप में समान्नित किया जाता है ।

अंबेडकर जयंती

हर साल 14 अप्रेल को मनाई जाती है डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती । इसे भारत में विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है , जिसमे दलितों समुदयो और न्याय समथर्क उनकी शिझाओ और योगदान को याद करते है । इस दिन को सामाजिक न्याय के प्रतीक दिवस के रूप में मनाया जाता है ।डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती का मुख्य उदेस्य उनके विचरो को जन – जन तक पहुंचना और समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देना है ।

FAQs अक्सर पूछे जाने अवले सवाल

Qs – डॉ भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न कब मिला था ?

Ans – डॉ भीमराव अंबेडकर को मरने के बाद 1990 में भारत रत्न से संनित किया गया ।

Qs – डॉ अंबेडकर ने कोन सा धर्म अपनाया था और कियो ?

Ans – उनोहने 1956 में बौध्द धर्म अपनाया , कियोकि वह जाती व्यवस्था और भेदभाव का विरोद करना चाहते थे ।

Qs – अंबेडकर साहेब शिझा के प्रति के सोचते थे ?

Ans – वे शिझा को समाज सुधार का सबसे महत्वपूर्ण साधन मानते थे , और वे अक्सर कहा करते थे , ” शिझित बनो ” और संगठित रहो और संघर्ष करो ।

Qs – डॉ आंबेडकर ने सविधान निर्माण में क्या भूमिका निभाई ?

Ans – डॉ भीमराव अंबेडकर सविधान सभा की परूप समिति के अध्यझ थे और भारत के सविधान का मसौदा तैयार किया ।

Qs – डॉ आंबेडकर का दलित समुदाय के लिए क्या योगदान है ?

Ans -डॉ भीमराव अंबेडकर साहेब ने दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और आरझण की व्यवस्था करवाई ताकि उन्हें शिझा और रोजगार सामान अवसर मिल सके ।

Qs – डॉ अंबेडकर ने कौन – कौन सी किताबे लिखी थी ?

Ans -डॉ भीमराव अंबेडकर बहुत सी प्रमुख किताबे है , जैसे “एनिहिलेशन ऑफ कास्ट” “द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी “ और भी बहुत सी पुस्तके है ।

Qs – डॉ अंबेडकर की जयंती कब मनाई जाती है ?

Ans – डॉ भीमराव अंबेडकर की जैनी 14 अप्रेल को मनाई जाता है ।

Qs – डॉ अंबेडकर और महात्मा घंडी के बिच क्या मतभेद थे ?

Ans – जाती पार्था और दलितों के अधिकारों पर दोनों के बिचार में अंतर था , गाँधी जी सुधारवादी थे , जबकि अंबेडकर जी जाती प्रथा को पूरी तरह समाप्त करना चाहते थे ।

Qs – डॉ अंबेडकर को बाबा साहेब कियो कहा जाता है ?

Ans – उन्हें यह सम्मान उनके अनुयायियों दवार दिया गया है , जी उनके प्रति आधार और श्रद्धा का प्रतीक है ।

Qs – डॉ अंबेडकर का मुख्य सन्देश क्या था ?

Ans – उनका मुख्य संदेश ये था ” समानता , स्वतत्रता और बंधुत्व ” जो भारतीय सविधान के मूल सिद्धांत भी है ।

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